जयपुर के 297 साल; ‘गुलाबी नगरी’ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का जश्न

सवाई जयसिंह द्वितीय ने 297 साल पहले जिस जयपुर को बसाया, उसमें वास्तु, कला और आध्यात्म सभी को समाहित किया था. पृथ्वी और ब्रह्मांड को दर्शाने वाली संकल्पना को जयपुर में ही सार्थक किया गया था. एक ऐसा क्षेत्र जहां राजा-महाराजा आखेट के लिए जाया करते थे. उसी जगह पर बसाया गया सबसे सुनियोजित शहर है जयपुर.

18 नवंबर 1727 को सवाई जयसिंह द्वितीय ने जिस शहर को बसाया, आज हम उसका जन्मदिन मना रहे हैं. इस शहर को सिर्फ जयपुर के नाम से नहीं बल्कि हेरिटेज सिटी, छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर एक आध्यात्मिक नगरी है. आध्यात्म के कई पहलू होते हैं, जैसे ज्योतिष, धर्म, जीवन जीने की कला. सवाई जयसिंह का बचपन धार्मिक निकला. उसी को आधार बनाकर के उन्होंने एक ऐसा नगर बसाने की सोची जो ब्रह्मांड की परिकल्पना को लिए हुई हो, जिसमें तारों की गणना हो, नवग्रह हो, इंद्र की पुरी, कुबेर की अलकापुरी का कांसेप्ट को लेकर वो आगे चले और काफी हद तक सफल भी रहे.

जयपुर की बसावट इस तरह से की गई, ताकि इसे विश्व की राजधानी के रूप में देखा जा सके. धार्मिक नगरी और काम करने वालों की नगरी के रूप में देखा जाए. शुरुआत में ये 25 हजार की जनसंख्या वाला शहर था, जिसे उस दौर में बहुत बड़ी जनसंख्या माना जाता था. सवाई जयसिंह की सोच यही थी कि धर्म की रक्षा के लिए भी जयपुर से कुछ होना चाहिए. ऐसे में काशी, मथुरा, हरिद्वार, राम जन्मभूमि के जितने भी धार्मिक आंदोलन हुए, उन सभी की जड़ जयपुर रही, और यहां से पैसा भी गया.

वर्तमान में यहां आठ दरवाजों से घिरा परकोटा है. उस दौर में सात दरवाजे हुआ करते थे. वो भी अलकापुरी की तर्ज पर बनाए गए थे. हर दरवाजे का एक नाम है. सभी दरवाजे चौपड़ों पर जाकर खत्म होते हैं और इन चौपड़ों पर भी अलग-अलग देवियों के यंत्र स्थापित हैं. इसी तरह की बसावट वहां आसपास की गई. छोटी चौपड़ पर सरस्वती यंत्र स्थापित किया गया और आसपास ब्राह्मण और ज्योतिषियों की बस्ती बसाई गई. बड़ी चौपड़ पर लक्ष्मी यंत्र स्थापित किया, जहां कारीगरों और व्यापारियों की बस्तियों को बसाया गया और रामगंज चौपड़ पर महाकाली का यंत्र स्थापित करते हुए फाइटर्स कौम बसाई गई.
जयपुर के लिए कहा जाता है कि ‘भोर बनारस, प्रयाग दोपहरी, शाम ए अवध, रात बुंदेलखंडी’. इस कहावत को लेकर देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि गलता की पहाड़ियों से निकलता हुआ सूर्य गंगा के पार बनारस में निकलते सूर्य सा प्रतीत होता है. दोपहरी का आलम इलाहाबाद में जिस तरह से पढ़ा लिखा वर्ग काम करने के बाद इलाहाबाद संगम पर चाय पीता हुआ दिखता है, वैसा ही नजारा जयपुर में बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ पर देखने को मिल जाएगा. शाम की खनक, शाम की बातें, शायरी, शतरंज, चौपाल, प्रेम प्रसंग की बातें अवध की तर्ज पर छोटी चौपड़ और चांदपोल बाजार पर देखा जा सकता है. अंतिम में बुंदेलखंड में जिस तरह से रात भर लोग कंबल ओढ़ कर बातचीत करते हैं, बड़े बुजुर्गों से उनके जीवन के अनुभव सुनते हुए सुबह हो जाया करती थी, वैसा दिखता है. जयपुर ऐसा नगर है जो सारी संस्कृतियों को समेटे हुए था.

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