उत्तर प्रदेश: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को मथुरा-वृंदावन का धार्मिक दौरा किया. इस दौरान उन्होंने बांके बिहारी मंदिर, निधिवन, सुदामा कुटी के दर्शन किए. सुदामा कुटी में राष्ट्रपति ने कल्पवृक्ष का पौधा भी लगाया. राष्ट्रपति मुर्मू सबसे पहले बांके बिहारी मंदिर पहुंचीं. उनके आगमन पर मंदिर को फूल-मालाओं से सजाया गया. मंदिर के पुजारी गौरव कृष्ण गोस्वामी ने पूजा-अर्चना करवाई. राष्ट्रपति ने ठाकुर जी के दर्शन किए, स्वास्तिक बनाकर 56 भोग अर्पित किया और देशवासियों की सुख-समृद्धि व शांति की कामना की.
गौरव कृष्ण ने बताया कि अब तक चार राष्ट्रपति इस मंदिर में पूजन कर चुके हैं—1988 में वेंकट रामन, 2016 में प्रणब मुखर्जी, 2019 में रामनाथ कोविंद और अब द्रौपदी मुर्मू. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू की पूजा में उनके बेटे आरव गोस्वामी ने भजन प्रस्तुत किया, जिसमें गीता का संदेश था—कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं.
बांके बिहारी मंदिर के बाद राष्ट्रपति निधिवन पहुंचीं. वहां सेवाधिकारी रोहित कृष्ण गोस्वामी ने बताया कि राष्ट्रपति ने पूरी परिक्रमा की और उस स्थान पर दीप प्रवज्जलित किया, जहां ठाकुर जी का प्राकट्य हुआ था. उन्होंने राधारानी के श्रृंगार स्थल पर सोलह श्रृंगार अर्पित किया, राधारानी जी को प्रसादी बंसी भेंट की और हरिदास जी की जीवित समाधि के दर्शन किए निधिवनराज की स्मृति-चिन्ह राष्ट्रपति को भेंट की. गोस्वामी ने बताया कि निधिवन के वृक्षों को गोपियों का स्वरूप माना जाता है. यहां चार प्रमुख स्थल हैं—बांके बिहारी प्राकट्य स्थल, रंगमहल (जहां ठाकुर जी शयन करते हैं), रास मंडल बंसीचोर राधारानी और हरिदास जी की जीवित समाधि. राष्ट्रपति ने इन सभी स्थलों के दर्शन किए.
इसके बाद राष्ट्रपति सुदामा कुटी पहुंचीं. यहां भगवा और सफेद कपड़ों व फूलों से विशेष सजावट की गई थी. राष्ट्रपति ने यहां भजन कुटी का लोकार्पण किया और परिसर में पारिजात (कल्पवृक्ष) का पौधा लगाया. यहां के महंत अमरदास जी महाराज ने बताया कि हम जुलाई में राष्ट्रपति से मिले थे. उन्होंने कहा था कि हम तो कान्हा से प्रेम करते हैं, पता नहीं कब बुलावा आएगा और आज 25 सितंबर को वे आ ही गईं. महंत ने कहा कि द्वापर काल में जैसी सुदामा और कृष्ण की मित्रता थी, वही संदेश आज भी जीवित है—मित्रता केवल प्रेम से चलती है, धन से नहीं. उन्होंने बताया कि सुदामा कुटी में प्रतिदिन रासलीला होती है और यहां के चने के भोग से दुख और दरिद्रता दूर होती है.